खंडवा. देश की राजधानी दिल्ली सुलग रही है। ऐसे समय महात्मा गांधी सांप्रदायिक आग को बुझाने के लिए सबसे पहले खड़े होते। 1947 में भी ऐसी ही स्थिति थी तब गांधी जी ने सांप्रदायिकता की आग को बुझाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। वे अहिंसात्मक सेना के ऐसे सेनापति थे कि जहां मुसीबत होती थी वहां पहले जाकर खड़े हो जाते थे। आजकल का ट्रेंड अलग है। खतरनाक समय में गांधी देश की जनता के साथ खड़े होते थे। भास्कर से विशेष चर्चा में यह बात डॉ. शोभना राधाकृष्ण (मुख्य कार्यकारी, गांधीवादी मंच (स्कोप), नई दिल्ली) ने कही। वे महात्मा गांधी के 150वें जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में गौरीकुंज सभागृह में गुरुवार को शाम 7 बजे गांधी कथा सुनाएंगी।
गांधीवादी विचारक डॉ. शोभना ने कहा हमारे भीतर धैर्य की कमी नहीं होनी चाहिए। करुणा, दया, प्रेमभाव और एकात्मकता बहुत बड़ा संदेश गांधी जी के जीवन में दिखाई देता है। वे हर किसी का दुख अपना मानकर उसे दूर करने में जुट जाते थे। आसुरी प्रवृत्तियों को अपने हृदय में जगह देंगे तो हम ही खत्म हो जाएंगे। गांधी जी से युवाओं की दूरी के सवाल पर डॉ. शोभना ने कहा पिछले तीन दशकों से कम्युनिकेशन और विज्ञान में हो रहे नए प्रयोगों के कारण युवा थोड़ा सा उनके विचारों से हटा लेकिन विदेशों में युवा गांधी जी के सीमित संसाधन में जीवन यापन और संयम के सिद्धांत के याद कर काम कर रहे है।
2012 में पहली गांधी कथा उपराष्ट्रपति भवन में हुई
डॉ. शोभना बताती हैं कि पहली गांधी कथा 2012 में उपराष्ट्रपति भवन दिल्ली में हुई। उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा इसे जन-जन तक पहुंचाओ। आज 30 देशों, 58 विश्वविद्यालयों, देश के 12 राज्यों के राजभवन सहित गांवों में 102 जगह हिंदी व अंग्रेजी भाषा में गांधी कथा को प्रस्तुत किया है।
गांधी के नहीं हुए दर्शन लेकिन वाणी से शोभना महात्मा के करीब
डॉ.शोभना का जन्म महात्मा गांधी द्वारा स्थापित सेवाग्राम आश्रम, वर्धा, महाराष्ट्र में 1952 में हुआ। हालांकि डॉ.शोभना ने गांधी जी को तो नहीं देखा, लेकिन उनके जीवन चरित्र का वाचन करते वक्त उनकी वाणी या हाव-भाव में कहीं भी इसकी कमी दिखाई नहीं देती है। डॉ.शोभना गांधी कथा के माध्यम से लोगों में राष्ट्रपिता के जीवन चरित्र को अपनाकर एकात्मकता का भाव लाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।